शायरे अहलेबैत मुश्ताक़ लखनवी को इस दुनिया से कूच किये एक साल होने को है लेकिन आज भी ऐसा महसूस होता है जैसे कल की बात हो, यू तो दुनिया में कोई हमेशा रहने के लिए नहीं आया है लेकिन वह शख्सियत जिनके जुदा हो जाने के बाद हम में हर किसी का जीना मुश्किल होता है, वह है वालिदैन,
जहाँ वालिदैन के बगैर एक पल जीना मुश्किल होता था अब दिन हफ्ता महीना और फिर एक साल होने को है, आह शायरे अहलेबैत मुश्ताक़ लखनवी_____ मरने वाले तुझे रोएगा ज़माना बरसों
तास्किन ए क़ल्ब के लिए और मरहूम तक सवाब पहुचाने के लिए मजलिसे तरहीम का इनेक़ाद किया गया है.
शायर-ए-अहलेबैत मुश्ताक़ लखनवी की बरसी की मजलिस ३० जुलाई 2016 7:30 बजे शीश महल पत्थर वाली मस्जिद में होगी.
शायर-ए-अहलेबैत मुश्ताक़ लखनवी के चुनिंदा कलाम
मोहम्मद का घराना रो रहा है……………..
ये कहते थे शहे वाला, सकीना हम नही होंगे………..
मैं ऐ बाबा अकेली हूँ…………………..
मुझको बाबा सदा दो अगर हो सके……………….
हम लूट गए नाना………………………..
करती थी ज़ैनब रोकर नौहा, क्या तू ही भाई है मेरा………………….
शै टूटी क़मर थाम के कहते थे बरादर, अब्बासे दिलावर………………
कहा लैला ने अकबर मेरे अकबर……………………
मुझको बाबा सदा दो अगर हो सके………
ये कर्बला में था शै का बयां मुसलमानो ………………
भरा घर याद आता है ………………….
रन में बाली सकीना की थी फ़ुग़ा, मेरे बाबा बताओ मई जाऊं कहां……
शैह टूटी कमर थाम के कहते थे बरादर
अहले दुनिया कहीँ मिदहत का सिला देते हैं……….
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